धर्म संकट
मैनें जीवन का पहला युद्ध कुलीन जमींदारों से उनके सम्मान के लिए लड़ा जो मेरे लिए अनजान थे अपरिचित थे, मेरे समक्ष कोई किसी का अपमान कर देता था तो मैं लड़ जाता था, मेरे इस लड़ने ने ही मुझे बुरा बना दिया उन सबका जो कुलीन थे श्रेष्ठी बोध के अहंकार में डूबे थे, माफिया थे गुंडे थे सरकारी डकैत थे, उच्च पदों पर थे।।
ईश्वर ने भी पता नहीं क्या सोच रखा था मेरे जीवन में अनेक बार ऐसे संयोग बने जब मुझे अनजान अपरचित् लोगों के लिए शक्तिशाली लोगों से लड़ना पड़ा।।
किसी कमजोर का निर्दोष का अपमान कोई करे यह मैनें कभी बर्दाश्त नहीं किया न कभी किसी के अपमान पर मौन रहा, कई बार ऐसा भी हुआ जब मुझे उनके सम्मान के लिए भी लड़ना पड़ा जो मेरे खून के प्यासे थे।।
कमजोर से कमजोर व्यक्ति के सम्मान की रक्षा हो कोई कितना भी शक्तिशाली हो यदि वह किसी का अपमान करे तो उसे दण्ड मिले मेरी यही लड़ाई रही सदा, मेरी यह लड़ाई कहाँ जाकर कब खत्म होगी समझ नहीं आता।।
ठग माफिया बेईमान अपराधी शासन प्रशासन और अब वह अपने भी इसमें सम्मिलित हो गए हैं जिनके लिए मेरे ह्रदय में प्रेम था सम्मान था।।
न्याय स्थापना ठगमुक्त बेईमान रहित भारत के निर्माण का स्वप्न किसी एक को भी मेरा अपना नहीं रहने देगा इसका आभास अब होने लगा है।।
जिन्हें हम अपना समझते हैं उनमें कोई एक भी हमारा नहीं है यदि हम उनकी निजी इच्छाओं भावनाओं जरूरतों को पूरा नहीं करते तो।।